
रिपोर्ट ;भूपेंद्र सिंह भण्डारी।
कौन कहता है कि उत्तराखंड के पहाड़ो में प्रतिभाओं की कमी है, कमी है तो केवल अपने दिल दिमाग को सही दिशा देने और सही जगह पर स्तेमाल करने की।
आपको बता दें कि उत्तराखण्ड के कुछ जुनूनी युवा अलग-अलग क्षेत्रों में ख़ामोशी से बड़े बड़े काम कर रहे हैं।जिनमे गीत, संगीत, बागवानी,खेती किसानी,खेल कूद,के अलावा अनेकों अभिनव प्रयोग भी कर रहे हैं।वो रोजगार के क्षेत्र हों,तकनीक हो या कला।उम्मीद और नाउम्मीदी के द्वन्द के बीच कुछ ऐसा हो जाता है कि उस पर हम सभी गौरवान्वित महसूस करते हैं।
आज हम आपको ऐसे ही एक युवा की पहल को बताने जा रहे हैं,जो कि गढ़वाल और कुमाऊं के दुसांद यानि मध्य क्षेत्र ग्वालदम के रहने वाले भरत परिहार है, जिन्होंने उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश की सीमा से जुडी एक सच्ची कहानी का आधार लेकर एक फीचर फिल्म बनाई है “भेड़िया धसान अर्थात भेड़ियों का बाड़ा” दरअसल यह बाड़ा कुछ समाज की विडंबनाओं को रेखांकित करता है तो कुछ सत्ता और व्यवस्थाओं की पोल भी खोलता।
पहाड़ से खाली हो चुके एक गाँव में एकाकी जीवन जी रहे एक पिता-बेटे और पोते के जीवन की मानवीय संवेदनाओं से जुडी यह कहानी कुछ झकझोरती भी है तो कुछ सवाल भी खड़े करती है। व्यवस्था का सार्वभौमिक भ्रष्टाचार एक कड़वी सच्चाई है तो समाज का भी एक अंधेरा पक्ष है जिसे फिल्म में बेहद खूबसूरती से दिखाया गया है। फिल्म के सभी कलाकारों ने अपने बेहद जीवंत अभिनय से और शानदार सिनेमेटोग्राफी ने इस पूरी कहानी को सार्थक किया है।अभी तक यह फिल्म भारत के सबसे प्रतिष्ठित ‘केरल फिल्म फेस्टिवल’ में दिखाई जा चुकी है और आगामी 14 अगस्त से ऑस्ट्रेलिया के मेलबोर्न शहर में शुरू होने वाले फिल्म फेस्टिवल में दिखाए जाने के लिए चयनित हुई है,यह भी एक बड़ी उपलब्धि है।
पहाड़ के युवा द्वारा बनाई गई इस फिल्म ओर इनकी पूरी टीम को बहुत-बहुत बधाई शुभकामनाएं देते हैं।और पहाड़ के भटके युवाओं को प्रेरणादायक भी है।